

रिपोर्ट एडिटर मोहम्मद राशिद-सैय्यद
अम्बेडकरनगर। टांडा नगर में आध्यात्मिकता और अदब का संगम उस समय देखने को मिला जब 161वां उर्से मुक़द्दसे सुबहानी बड़े ही अकीदतमंदों और शायरों की मौजूदगी में सम्पन्न हुआ। इस मौके पर देश के विभिन्न प्रांतों से आए मशहूर शायरों ने अपने-अपने अंदाज में कलाम पेश कर महफिल को रोशन किया।
उर्से सुबहानी में खास तौर पर मौजूद रहे सैय्यद मोहम्मद अकमल मियां अशरफी टांडवी, जैनुल आबदीन शायर कानपुरी, समीर रज़ा इलाहाबादी,सैय्यद शिबली अशरफ़ कानपुरी, सैय्यद कलीम अशरफ,मौलाना क़ारी निसार अहमद निज़ामी अमर ढोभा,सैय्यद समर चिश्ती सैय्यद ग़ाज़ी कानपुरी समेत टांडा नगरक्षेत्र के गणमान्य लोगों एवं नगरवासियों की उपस्थिति में इन सभी ने शायरो ने अपने कलाम और अंदाज-ए-बयां से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पूरी रात चली इस महफिल की निज़ामत कारी जमाल टांडवी ने बखूबी निभाई। वहीं शायर बेलाल टांडवी और जिगर इल्तेफातगंवी, ने अपने अशआर से महफिल की रौनक और भी बढ़ा दी। कानपुर से आए सैय्यद शिबली अशरफ़ कानपुरी के साथ पहुंचे शायरों ने अपने अंदाज में इश्के ख्वाजा सुल्तानेहिंद ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और अजमेर के राजा पृथ्वी राज चौहान के बीच हुई दासनात को बयां किया।
साथ ही चंद शेर पढ़कर मुस्लिम समुदाय के लोगों को अच्छाई और सच्चाई व एक जुटता का संदेश दिया। जहां आए शायरों ने भी अपने मंक़दब पेश कर माहौल को इश्क-ए-रसूल की महक से सराबोर कर दिया।
यह उर्स केवल टांडा नगर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि नगरक्षेत्र के साथ-साथ आसपास के इलाकों और विभिन्न जनपदों से आए अकीदतमंदों और शायरों ने इसमें शिरकत की। हर शायर ने अपनी विशिष्ट शैली में अशआर पेश कर महफिल-ए-सुबहानी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
161 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा ने एक बार फिर साबित किया कि टांडा की यह धरती सिर्फ आध्यात्मिकता ही नहीं, बल्कि अदब और कलाम का भी गढ़ है।जहां हमेशा से गंगाजमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश की जाती है,बुनकर नगरी टांडा हिंदू मुस्लिम एकता और अखंडता की आज भी मिसाल कायम है यहां हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्मो के लोग एक दूसरे के धर्मो की मान्यताओं का सम्मान करते है।