अम्बेडकरनगर जनपद के सभी क्षेत्रों में धूमधाम से मनाई गई शब-ए-बरअत इस रात को इस्लाम धर्म में प्रायश्चित की रात माना जाता है। ऐसी मान्यता है, कि यह वह रात है जब ईश्वर अपने बंदों की गुनाहों को माफ करता इस रात का इस्लाम धर्म में बड़ा महत्व है,
बतादे आने वाले वर्ष के लिए ईश्वर मुस्लिम धर्म के व्यक्तियों की नियति पर निर्धारित करता हैं और ईमानदारी से पश्चाताप करने वालों के पाप धुल जाते है। इस्लाम धर्म के मानने वालो की ऐसी मान्यता है, इसलिए पूरी रात इबादत में बिताई जाती है, बहरहाल मुस्लिम समुदाय का यह प्रमुख त्योहारों में से एक है।
इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, यह चंद्र वर्ष के आठवें महीने उर्दू कैलेंडर के अनुसार शाबान की 15वीं रात को मनाई जाती है, शबे-ए-बरअत इसे इबादत की रात कह सकते है या दुआ की रात भी कह सकते है।
यह रात मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए अल्लाह से दया,आशीर्वाद, और अपने गुनाहों की माफी मांगने की रात मानी जाती है, कहते है कि इस रात को मांगी जाने वाली हर जायज़ दुआं को ईश्वर जरूर कुबूल करता हैं.
इस पूरी रात में लोगों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. इसीलिए मुस्लिम समुदाय के लोग रात भर जागकर नमाज और कुरान पढ़ते हैं. इतना ही नहीं मुस्लिम समुदाय के लोग अपने पूर्वजों की कब्रों पर जाकर उनकी फूल, अगरबत्ती, मोमबत्ती, और फातेहा बढ़ कर उनकी गुनाहों की माफी के लिये दुआं करते है।
और उनकी मगफिरत के लिए भी दुआ करते हैं. यानि ईश्वर उन्हें क्षमा करदें और स्वर्ग में जगह दे साथ ही साथ स्वयंम की गुनाहों की भी मांफी मिल सके इसके लिये मुस्लिम समुदाय के लोग
पूरी रात्रि इबादत में गुज़ार देते है और प्रातः की नमाज़ पढ़ते है जिसके उपरांत बहुत से लोग सरयू नदी तटपर जाते है जहां अपनी मन्नतों के लिये नदी में अरीज़ा डालते है पटाखे फोड़ते है जिसके बाद फुर्सत मिलती है तो इस तरह मनाई जाती है शबे-ए-बरअत ।