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पहली पत्नी के अधिकारों पर एकतरफा रिपोर्ट: लेखपाल बना विपक्षी दल का साझेदार?

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अम्बेडकरनगर। जनपद में लेखपालों के कारनामे लगातार सामने आ रहे हैं। कहीं एंटी करप्शन टीम की गिरफ्त में लेखपाल आ रहे हैं? तो कहीं उनके भ्रष्टाचार की कहानियाँ गांव-गांव में चर्चा का विषय बनी हुई हैं?बावजूद इसके, कुछ लेखपाल अपनी मनमानी और पक्षपातपूर्ण रवैये से बाज नहीं आ रहे हैं। ताजा मामला है टांडा तहसील क्षेत्र के नैपुरा जलालपुर गांव का, जहां एक लेखपाल द्वारा खुलेआम पहली पत्नी के अधिकारों को नज़रअंदाज़ करते हुए एकपक्षीय रिपोर्ट लगाकर स्वयं पार्टी बनता नज़र आ रहा है।

विधवा महिला का संघर्ष: अधिकार की लड़ाई में बाधाएं
गांव की एक महिला, सिंदू पत्नी स्व. रामगरीब, जो वर्ष 2019 से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है। जबकि ये महिला 2023 में विधवा हुई, लेकिन आज भी वह अपने अधिकारों की लड़ाई अकेली लड़ रही है। उनका एक 14 वर्षीय बेटा भी है। और उन्होंने दोबारा विवाह कही पर विवाह भी नहीं किया, बल्कि सादगीपूर्ण जीवन अपनाकर टांडा विकास खंड के मखदूम नगर में स्थित एक बाबा राम शरण दास विद्यालय में वह बीते चार वर्षों तक अध्यापिका के रूप में कार्य कर रही थी लेकिन।

विरोधियों की साजिश के चलते इस सत्र में उन्हें विद्यालय से भी हटा दिया गया — ताकि उनकी आय का स्रोत समाप्त हो जाए और वह अपने कानूनी अधिकारों की लड़ाई में कमजोर पड़कर छोड़ दें। लेकिन महिला ने हार नहीं मानी और अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। साथ ही सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने की ठानी।
आय और जाति प्रमाण पत्र में रोड़ा बना लेखपाल?
सरकारी नौकरी हेतु जरूरी दस्तावेजों — जैसे आय और जाति प्रमाणपत्र — के लिए महिला ने तीसरी बार जनसेवा केंद्र से ऑनलाइन आवेदन किया। लेकिन लेखपाल द्वारा विपक्षी पक्ष के समर्थन में पहले दो बार आवेदन यह लिखते हुए निरस्त कर दिया कि प्रधान द्वारा फोटो प्रमाणित नहीं करवाया गया है।

और तीसरी बार पहली पत्नी तो लिखा – लेकिन सम्बन्ध विच्छेद का फोटो कापी स्टाम्प पेपर दिखाकर जवाब लिखकर रिपोर्ट लगाते हुए निरस्त कर दिया क्योंकि महिला ने इस बार लेखपाल की आनलाइन शिकायत किया था इस लेखपाल को लिखकर उसका जवाब देना पड़ा जिसकी डाउनलोड की गई कापी महिला के पास उपलब्ध है।

जबकि ग्राम प्रधान भली-भांति जानती हैं कि महिला न्यायालय में अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रही है और अभी तक किसी तरह का वैधानिक संबंध विच्छेद का निर्णय नहीं हुआ है। बावजूद इसके, विपक्षियों के दबाव में प्रधान ने फोटो प्रमाणित करने से इंकार कर दिया।
प्रॉपर्टी के लालच में रचा गया यह एक षड्यंत्र है?
महिला जिस संपत्ति के अधिकार की लड़ाई लड़ रही है, वह मामला काफ़ी बड़ा बताया जा रहा है। गांव के एक पूर्व प्रधान और एक दबंग व्यक्ति ने प्रॉपर्टी की लालच में 50 रुपये के स्टांप पेपर पर ‘संबंध विच्छेद’ का फर्जी दस्तावेज तैयार करवाया और 10-10 रुपये के स्टांप पर गवाही तक दे डाली।

इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर लेखपाल और प्रधान खुलेआम विपक्षी दल के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं, जबकि स्पष्ट रूप से यह हिंदू मैरिज एक्ट का उल्लंघन है। कानून के अनुसार, किसी भी वैवाहिक संबंध का वैध विच्छेद केवल फैमिली कोर्ट द्वारा ही किया जा सकता है, न कि किसी स्टांप पेपर पर।
तीन बार पंचायत, फिर भी महिला को नहीं मिला न्याय?
महिला द्वारा किए गए उत्पीड़न की शिकायत पर डीपीआरओ के निर्देश पर तीन बार पंचायतें बुलाई गईं, लेकिन सभी पंचायतें हिंदू मैरिज एक्ट के कानून के सामने असहाय साबित हुईं।

विकासखंड टांडा के अधिकारियों ने भी कोई स्पष्ट निर्णय न देते हुए तीनों पंचायतों की रिपोर्ट जिला राज पंचायत अधिकारी को विधिक राय के लिए भेज दी है। अब सवाल उठता है कि क्या राज पंचायत अधिकारी इस मामले को फैमिली कोर्ट के दायरे से बाहर मानकर स्टांप पेपर पर आधारित ‘संबंध विच्छेद’ को वैध ठहराएंगे? या महिला के अधिकार की इस लड़ाई को उच्च न्यायालय के हवाले करेंगे?

मुख्यमंत्री के महिला सशक्तिकरण अभियान को झटका
यह मामला उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा चलाए जा रहे महिला सशक्तिकरण अभियान पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। एक विधवा महिला जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से जीवन यापन करते हुए न्याय के लिए संघर्ष कर रही है, उसे खुलेआम लेखपाल, प्रधान और कुछ दबंग लोगों द्वारा उसका उत्पीड़ित किया जा रहा है।

क्या होगी न्याय की राह?
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिले के उच्च अधिकारी इस पूरे मामले में निष्पक्ष कानूनी दृष्टिकोण अपनाते हैं या नहीं। महिला की इस लड़ाई में न्याय और कानून की विजय होगी या फिर दबंगई और लालच के आगे न्याय प्रणाली एक बार फिर कमजोर साबित होगी?

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