अम्बेडकरनगर । विश्व अनुवाद दिवस के अवसर पर युवा साहित्यकार हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कहा कि हिंदुस्तान संतों, सूफ़ियों और महात्माओं की धरती है। इस मिट्टी ने न जाने कितने संतों को जन्म दिया, जिन्होंने अपनी शिक्षाओं के दीपक से लोगों के दिलों पर मोहब्बत और इंसानियत के चराग़ जलाए।
हाशिम रज़ा ने ज़ोर देकर कहा –
“संत, सूफ़ी या महात्मा किसी धर्म, सम्प्रदाय या समूह के प्रतिनिधि नहीं होते, बल्कि वे मोहब्बत और इंसानियत के पैरोकार होते हैं। उनकी शिक्षाएँ धर्म और जात-पात के बंधनों से परे होती हैं। इसलिए संतों और सूफ़ियों की रचनाओं का अनुवाद दूसरी भाषाओं में होना चाहिए, ताकि उनका सार्वभौमिक संदेश हर पाठक तक पहुँच सके और दुनिया में मोहब्बत और इंसानियत आम हो सके।”
साहित्यिक उपलब्धियाँ
हाशिम रज़ा जलालपुरी की अब तक दो महत्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं: “मीराबाई उर्दू शायरी में – जिसमें मीराबाई के पदों का उर्दू शायरी में अनुवाद किया गया है। यह कृति साहित्यिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हुई और अब डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या (उ.प्र.) के एमए (उर्दू) प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में संदर्भ पुस्तक के रूप में सम्मिलित है।
“कबीर उर्दू शायरी में – जिसमें संत कबीर के पदों को उर्दू शायरी में ढाला गया है। इस पुस्तक को मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग की ओर से शादाँ इंदौरी अखिल भारतीय पुरस्कार 2023 से सम्मानित किया गया।
कबीर की साझा संस्कृति का संदेश
जलालपुरी ने कहा कि संत कबीर भक्ति आंदोलन की साझा संस्कृति के अलमबरदार हैं। उनकी नज़र में राम और रहीम एक हैं।
कबीर की रचनाएँ गंगा-जमुनी तहज़ीब का अद्भुत संगम हैं। उनके पदों और दोहों में भक्ति और तसव्वुफ़ दोनों का रंग नज़र आता है।
कबीर के अनुसार – इंसानों के बीच कोई ऊँच-नीच नहीं है। न कोई बड़ा है, न कोई छोटा, सब एक ही ईश्वर की संतान हैं। नफ़रत की दीवारें केवल दूरी और झगड़े बढ़ाती हैं। कबीर ने मोहब्बत की इमारत खड़ी करने का काम किया और इसमें उन्हें सफलता भी मिली।
आने वाली योजनाएँ
“मीराबाई उर्दू शायरी में” और “कबीर उर्दू शायरी में” के बाद हाशिम रज़ा जलालपुरी अब कई और भारतीय संतों, सूफ़ियों और महात्माओं की रचनाओं को उर्दू शायरी में ढालने का काम कर रहे हैं।
इन कृतियों के प्रकाशित होने से समाज में भाईचारा, प्रेम और सौहार्द को नई दिशा मिलेगी।
निष्कर्ष
हाशिम रज़ा जलालपुरी की यह पहल साहित्य के माध्यम से समाज में प्रेम, भाईचारा और साझा संस्कृति को सशक्त करने की कोशिश है।
संतों और सूफ़ियों की वाणी का अनुवाद करके वह यह संदेश दे रहे हैं कि मोहब्बत और इंसानियत ही मानव जीवन का असली आधार है।



