अम्बेडकरनगर ! जनपद के विभिन्न क्षेत्रों सहित जनपद की तहसील टांडा से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक प्राइवेट बसें अवैध रूप से ठेका परमिट लेकर लखनऊ तक लोकल सवारी ढोते हुए संचालित हो रही हैं, जिसकी वजह से प्रत्येक दिन सरकार का भारी भरकम राजस्व का नुकसान हो रहा है। जहां इन बसों को परिवाहन आयुक्त कार्यालय द्वारा विभिन्न जनपदों की अथॉरिटी के द्वारा ठेका परमिट दी गई है,
जो कि एक स्थान से दूसरे स्थान तक केवल रिजर्व पार्टी के लिए वैध है ना कि सवारी ढोने के लिए नहीं दी गई है। लेकिन बसों का उसके विपरीत संचालन किया जा रहा है। और टांडा से लखनऊ तक लोकल सवारियां ढोई जा रही हैं।
अवैध बसों का संचालन: एक बड़ा मुद्दा
इन बसों का संचालन न केवल राजस्व का प्रतिदिन भारी भरकम नुकसान हो रहा है, बल्कि यह भी एक बड़ा मुद्दा है कि इन बसों को रोकने वाला कोई नहीं है। एआरटीओ की भूमिका भी संदिग्ध नज़र आ रही है, जो इन बसों के प्रति सहानुभूति रखाते हुए नजर आ रही हैं।
बसों के ड्राइवर और कंडक्टर में आये दिन लड़ाई-झगड़े हो रहे है –
टांडा रूट पर संचालित होने वाली बसों के ड्राइवर और कंडक्टर में रोजाना नंबर को लेकर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। पूर्व में इन बस मालिकों में आपसी भयंकर लड़ाई भी हुई थी, जिसमें खूनी संघर्ष तक बात पहुंच गया था?
टांडा कोतवाली में चार बसें सीज़ – गोल्डन, वैभव, एसबीएस बस सर्विस, और आर्मी बस – दृश्य – खबरों आगे बढ़े –
बहरहाल जहां जनपद की तहसील टाण्डा क्षेत्र अयोध्या मार्ग पर स्थित ग्राम ऐनवां चौकी से शुरूआती दौर में सिर्फ एक बस का संचालन था वहीं वर्तमान समय में सिर्फ एक ही मालिक की पांच-पांच बसें संचालित हो रही हैं,
जिस पर आर्मी लिखवा कर भौकाल बनाया जा रहा है और पद का दुरुपयोग किया जा रहा है। बहरहाल यह अपने आप में सोचनीय विषय है आखिर टांडा रूट से होते हुए
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक बे खौफ फर्राटा रही है। और एक सब की जगह पांच बसों का संचालन जाहिर सी बात है कही ना कही प्रतिदिन का भारी भरकम सरकार के राजस्व में हानि होना तय।
निष्कर्ष
वही अम्बेडकरनगर में अवैध परमिट पर बसों का संचालन एक बड़ा मुद्दा है, जिससे सरकारी राजस्व का लम्बे पैमाने पर नुकसान हो रहा है। एआरटीओ और अन्य अधिकारियों को इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए और अवैध बसों के संचालन को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। बहरहाल जहां एक बस को –
संचालित करवाना नाको चने बचाने जैसे है जहा टांडा से लखनऊ एक बस के नम्बर के लिए महीनों तक बस मालिकों में विवाद पैदा हो जाता है और जो काफी दिनों तक चलता है, वही आर्मी नाम से पांच – पांच बसों का धड़ल्ले से बेखौफ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक
संचालित करवाना काफी बड़ी बात है, जिसका काफी लम्बा नेटवर्क है, जो पद के नाम का कही न कही दुरपयोग ही कहा जा सकता है, बहरहाल बात यही पर नही समाप्त होती है अगर किसी अन्य बस के कंडक्टर या ड्राइवर से आर्मी बस के संचालकों से जरा भी कहा सुनी हो जाती है।
तो फिर उसकी खैर नही ऐनवां चौकी पार करना उस बस के कंडक्टर और ड्राइवर के साथ उस बसको भारी पड़ जाता या तो फिर वह कंडक्टर या ड्राइवर ऐनवां चौकी पर पिटता है और बस भी खड़ी करवा ली जाती है, या फिर उसे बस छोड़कर भागना पड़ता है, बहरहाल टांडा से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक बड़े ही रसूख के साथ संचालित हो रही है आर्मी बस।
वही जनपद के एआरटीओ कान में तेल डालकर चुपचाप तमाशा देख रहे है, जबकि टांडा नगरक्षेत्र में स्थित दोनों थनो ने संज्ञान लेते हुए थोड़ी बहुत कार्यवाही की और कुछ बसों को सीज़ भी किया गया है, उसी के साथ थाना बसखारी
एसएचओ ने भी लखनऊ तक संचालित की जा रही सैकड़ों बसों में से बड़ी कार्रवाई करते हुए कई बसों पर सीज़ की कार्रवाई की गई है, हालांकि की जहा सैकड़ों बसों का संचालन है, ऐसे में भला 10 से पंद्रह बसों कार्यवाही होना ना के बराबर है?
जहां अवैध रूप से संचालित होने वाली कई बसों को सीज़ करने की कार्रवाई की गई लेकिन एआरटीओ के द्वारा जिस तरह से कार्यवाही करनी चाहिए वे नहीं करते है, बल्कि उनकी निगाह में जनपद के पत्रकार सोशल मीडिया के पत्रकार दिखाई देते है,
यदि उनसे किसी बात को लेकर सवाल जवाब करों तो वे हवा-हवाई बताते है, किये गए सवालों को गंभीरता से ना लेकर कानून का पाठ पढ़ाते नज़र आते है और अपना पैमाना बताने लगते है,
ऐसे में भला वे कार्यवाही क्या करेंगे जब बसों पर उनकी सिम्पैथी नज़र आ रही है? वही दूसरी तरफ अवैध रूप से संचालित हो रही बसें जनपद के विभिन्न क्षेत्रों से लखनऊ तक पैसेंजर ढोकर सरकार के राजस्व का भारी भरकम नुकसान कर रहा है!
वही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लगातार बेरोजगारो के लिए रोडवेज भर्ती निकाल रही है और बेरोजगार युवा चालक का टेस्ट देकर जब रोडवेज में भर्ती के लिए पहुंचते है और बसों का संचालन शुरू करते है तो कही ना कही उन्हें सवारियां नही मिल पाती है,
साथ बसें पुरानी होने के कारण और प्राइवेट बसों पर किराया कम होने के कारण भी उन्हें सवारियां नही मिलती है और उनका दिन बेकार चला जाता है दूसरे परिवहन विभाग के बाबूओ द्वारा उनकी रिकवरी कर ली जाती है,
जहा वे महीने भर में मात्र तीन से चार हजार ही बचा पते है ऐसे में उनका परिवार चलना मुश्किल हो जाता है और वे रोडवेज की ड्यूटी छोड़कर चले जाते है और फिर से बेरोजगार होकर रह जाते है,
जो अपने आप में गम्भीर और सोचनीय विषय है और सरकार के सपनों पर पलीता लगता नज़र आ रहा है इसमें कही ना कही रोडवेज के जिम्मेदारानो की कमी का जीता जागता सबूत है, बात यही पर नही समाप्त होती है,
रोडवेज चालकों स्वयंम बस में लगाने के लिए साइड शीशा भी खरीद कर लाना पड़ता है अच्छे वाहन पर ड्यूटी करने के लिये भी रूपये खिलना पड़ता है डीजल से लेकर धुलाई और मकैनिकल कार्य के लिए भी रोडवेज चालकों को नजराना देना पड़ता है जहां चालकों का खुलेआम उत्पीड़न किया जा रहा है?