

रिपोर्ट: एडिटर मोहम्मद राशिद-सैय्यद न्यूज़ टेन प्लस,
अम्बेडकरनगर। जनपद की विश्व प्रसिद्ध दरगाह किछौछा शरीफ़ में सूफी संत हज़रत सैय्यद मखदूम अशरफ जांहगीर समनानी रहमतुल्लाह अलैह के 639वें उर्स के समापन के उपरांत शनिवार 26 जुलाई, 30 मोहर्रम को सहने आस्ताना में ‘दाखौल’ का विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस पवित्र मौके पर दरगाह के सज्जादानशीन और मुतवल्ली सैय्यद मोहीउद्दीन अशरफ की सरपरस्ती में यह रूहानी कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
दाखौल कार्यक्रम में देश के विभिन्न प्रान्तों से आए श्रद्धालु और फुकरा शामिल हुए। इस दौरान सहने आस्ताना में विशेष दुआएं पढ़ी गईं और हज़रत मखदूम अशरफ की बारगाह में हाजिरी दी गई। मलंग मोहम्मद आलम शाह के नेतृत्व में दूर-दूर से आए फुकराओं ने कार्यक्रम में भाग लिया।
क्या है ‘दाखौल’ का मतलब?
‘दाखौल’ शब्द उर्दू का है, जिसका हिंदी में मतलब होता है – प्रवेश करना, सम्मिलित होना या शरीक होना। दरगाह की रूहानी परंपरा के अनुसार यह कार्यक्रम उन लोगों के लिए आयोजित होता है,जो दुनियावी मोह-माया को छोड़कर फ़कीरी, यानी अल्लाह की राह पर चलने का इरादा रखते हैं। ऐसे लोग इस कार्यक्रम में सज्जादानशीन और मौजूद फुकराओं की सरपरस्ती में शरीक होते हैं और राहे तरीक़त (आध्यात्मिक मार्ग) में दाखिल होने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं।
जो व्यक्ति सच्चे दिल से इस रास्ते को अपनाना चाहता है, वह इस कार्यक्रम के माध्यम से अल्लाह के प्रति अपनी पूर्ण आस्था प्रकट करता है और कहता है – “तरीकत ए आला बिस्मिल्लाह, तवक्कल तो अला रिस्तिल्लाह” यानी अब उसने अपनी ज़िन्दगी अल्लाह के हवाले कर दी है, और जो भी मिलेगा, वही खाएगा जो अल्लाह की तरफ़ से मुक़द्दर होगा।
फुकराओं की परंपरा और उनकी अर्ज़ियाँ
इस कार्यक्रम का एक खास पहलू यह भी है कि विभिन्न स्थानों से आए फुकरा, यदि किसी मोहल्ले, गली या स्थान पर किसी व्यक्ति से कोई दुआ या मदद पाते हैं,
और वह बात उनके दिल में घर कर जाती है, तो उर्स समापन के बाद जब यह दाखौल कार्यक्रम होता है, तो वे दरगाह के सज्जादानशीन से उस व्यक्ति के लिए खास दुआ करने की अर्ज़ी लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब सज्जादानशीन उस व्यक्ति के लिए दुआ करते हैं, तो वह दुआ अवश्य कबूल होती है।
इसके अलावा, यदि किसी फुकरा को कहीं पर किसी व्यक्ति द्वारा परेशान किया गया हो, तो वह भी इस कार्यक्रम के दौरान सज्जादानशीन से शिकायत कर सकता है।
फुकराओं का नेतृत्व इस समय मलंग मोहम्मद आलम शाह कर रहे हैं, जो हर साल 24 मोहर्रम को उर्स के दौरान अपने नेतृत्व में चादरपोशी करते हैं और उर्स समापन के बाद दाखौल कार्यक्रम में भी शामिल होते हैं।
गुनाहों का एतराफ और फ़कीरी की शुरुआत
जो व्यक्ति इस कार्यक्रम के ज़रिए फ़कीरी को अपनाना चाहता है, उसे पहले अपने जीवन के सभी गुनाहों को याद कर एक-एक करके दरगाह सैय्यद मखदूम अशरफ
मुतवल्ली साहबे सज्जादानशीन और फुकराओं के सामने बयान करना होता है। इसके बाद, फुकरा और सज्जादानशीन मिलकर उसकी गलती की सज़ा तय करते हैं और उस व्यक्ति के लिए हद और दायरे निर्धारित किए जाते हैं, जिससे वह भविष्य में उसी मार्ग पर चले।
इस बार नहीं आया कोई नया राहे-तरीक़त में
बहरहाल, इस वर्ष प्राप्त जानकारी के अनुसार, दाखौल कार्यक्रम के दौरान किसी भी व्यक्ति ने राहे तरीक़त में दाखिल होने की इच्छा नहीं ज़ाहिर की। साथ ही बताते चलू खास बात यह है,
कि किसी भी व्यक्ति से इसके लिए कहा नहीं जाता यदि वह खुद से अपनी गुनाहों की तौबा करना चाहे तो कर सकता है इसके लिए फ़ुकरा, या सज्जादानशीन या दरगाह कमेटी का कोई भी पदाधिकारी या सदस्य कहता नही है।
फिर भी, कार्यक्रम बड़े अदब और रूहानियत के साथ सम्पन्न हुआ। इस मौके पर मुख्य रूप से शामिल रहे दरगाह मुतवल्ली साहबे सज्जादानशीन सैय्यद मोहीउद्दीन अशरफुल जीलानी, मलंग फ़कीर मोहम्मद आलम शाह सहित आए हुए और स्थानीय समस्त फ़ुकरा,
दरगाह इंतेज़मिया कमेटी सेराज अहमद गुड्डू, सैय्यद फैज़ान अशरफ उर्फ चांद मियां, सैय्यद खलीक अशरफ,मोहम्मद अशरफ बड़े बाबू, सैय्यद आले मुस्तफा छोटे बाबू, सैय्यद नैय्यर अशरफ, सैय्यद नूर, मेराज, सैय्यद हुसैन अशरफ,
सैय्यद सुल्तान अशरफ, सैय्यद अरशद जीलानी, सैय्यद रईस अशरफ, सैय्यद जामी अशरफ जामी मियां, सैय्यद अली अशरफ, मौलाना सैय्यद जावेद अशरफ, सैय्यद हसन अशरफ, सैय्यद खलीक अशरफ, सैय्यद शफीक अशरफ, सहित अन्य गणमान्य लोग भारी संख्या में मौजूदगी रहें। दाखौल कार्यक्रम में पुलिस प्रशासन की तरफ से सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम किया गया था।